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Sourav Roy

हाईवे

पहले सिर्फ नदियाँ थीं अब हाईवे हैं
इस पार के लोग उस पार नहीं जा सकते
गरड़िया भेड़ा नहीं चरा सकता
मर्द बैंक नहीं जा सकता
नदी होती तो मज़े से तैर जातीं
यहाँ गाड़ियों की बाढ़
कोयला खींचती ट्रक पमपमाती कार
बच्चा देख भी नहीं रूकतीं
तिस पर ये सड़क सिक्स-लेन से टेन-लेन
गभाती जा रही है
गाँव काट दिया है बीच से
इधर सिर्फ़ ठाकुर किराना
धराता है काम ऐंठता पैसा
उधर पंचायत है हाट बाज़ार
पोस्टाफिस . . .

मैं पूछ ही रहा था—
और, तुम्हारी माई का घर?
वो डामर लादकर चल पड़ी—
वो तो बहुत दूर है बाबू
वहाँ सड़क भी नहीं जातीं ।

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